निपुन सक्सेना और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य
(1) कोई भी व्यक्ति पीड़िता का नाम प्रिंट, इलेक्ट्रानिक,सोशल मीडिया इत्यादि में मुद्रित अथवा प्रकाशित नहीं कर सकता है अथवा किसी दूरस्थ तरीके में भी ऐसे किसी तथ्य का प्रकटन नहीं कर सकता है जो पीड़िता को पहचानने की ओर अग्रसर करते हैं या जो उसकी पहचान को लोगों के बीच सार्वजनिक करता है ।
(2)
ऐसे
मामलों
में
जहाँ
कि
पीड़िता
की
मृत्यु
हो
चुकी
है।
या
वह
विकृतचित्त
की
है,
पीड़िता
का
नाम
या
पहचान
उसके
निकट
सम्बन्धी
के
द्वारा
अधिकृत
कर
दिये
जाने
के
बाद
भी
तब
तक
प्रकट
नहीं
किया
जाना
चाहिए
जब
तक
कि
ऐसा
करने
के
लिए
न्यायोचित्त
परिस्थितियां
विद्यमान
न
हो,
जिसका
निर्धारण
सक्षम
प्राधिकारी,
जो
वर्तमान
में
सत्र
न्यायाधीश
है,
के
द्वारा
किया
जायेगा।
(3)
सभी
प्राधिकारीगण,
जिन्हें
अन्वेषण
संस्था
या
न्यायालय
के
द्वारा
पीड़ित
का
नाम
प्रकट
करने
की
अनुमति
दिया
गया
है,
पीड़ित
के
नाम
एवं
पहचान
को
गुप्त
रखने
के
लिए,
उस
रिपोर्ट
के
सिवाय,
जिन्हें
अन्वेषण
संस्था
या
न्यायालय
को
सील्ड
कवर
में
केवल
भेजने
के
लिए
कहा
गया
है,
किसी
भी
तरीके
में
प्रकट
नहीं
करने
के
लिए
कर्त्तव्यबद्ध
है।
(4)
भारतीय
दंड
संहिता
की
धारा
228-क
(2) (ग)
के
अन्तर्गत
मृत
या
विकृतचित्त
पीड़ित
के
निकट
सम्बन्धी
के
द्वारा
किसी
आवेदन-पत्र
को
तब
तक
केवल
सत्र
न्यायाधीश
को
पेश
किया
जायेगा,
जब
तक
कि
सरकार
के
द्वारा
इस
सम्बन्ध
में
हमारे
निर्देशानुसार
कोई
गाइड
लाइन
नहीं
बना
लिया
जाता
है,
जिसमें
समाज
कल्याण
संस्था
या
संगठन
की
पहचान
(अधिकृत
किया
जाना)
भी
सम्मिलित
है।
(5)
भारतीय
दंड
संहिता
की
धाराओं
376, 376-क, 376 - कख,
376-ख,
376-ग,
376-घ,
376-घक,
376-घख
और
376-ङ
अथवा
पाक्सो
एक्ट
के
अन्तर्गत
अपराधों
से
सम्बन्धित
प्रथम
सूचना
रिपोर्टों
को
जन
सामान्य
के
अवलोकन
के
लिये
नहीं
रखा
जायेगा।
(6)
यदि
कोई
पीड़िता
भारतीय
दंड
संहिता
की
धारा
372 के
अन्तर्गत
अपील
करती
है,
तब
उसे
अपना
/ अपनी
पहचान
प्रकट
करना
अनिवार्य
नहीं
होगा
और
अपील
को
विधि
के
अनुसार
प्रस्तुत
किया
हुआ
माना
जायेगा।
(7)
पुलिस
अधिकारी/कर्मचारी
उन
सभी
दस्तावेजों
को
सील्ड
कवर
में
रखेंगे,
जिनमें
पीड़िता
का
नाम
दर्ज
है
और
इन
दस्तावेजों
को
काल्पनिक
नामों
से
प्रतिस्थापित
करके
ही
जन
सामान्य
के
अवलोकन
के
लिए
रखा
जायेगा।
(8)
पाक्सो
एक्ट
के
अन्तर्गत
अवयस्क
पीड़िता
के
मामलों
में
उनके
पहचान
का
प्रकटन
केवल
विशेष
न्यायालय
की
अनुमति
से
ही
किया
जा
सकता
है,
यदि
ऐसा
प्रकटन
बच्चे
के
हित
में
हो,
(अन्यथा
नहीं)।
(9)
सभी
राज्यों
और
केन्द्र
शासित
क्षेत्रों/राज्यों
से
आज
की
तिथि
से
एक
वर्ष
के
भीतर
प्रत्येक
जिले
में
कम
से
कम
विश्राम
केन्द्र
की
स्थापना
करने
का
अनुरोध
किया
जाता
है।
(10)
निर्णय
की
एक
प्रति
इसके
अनुपालन
के
लिए
सभी
राज्यों
के
उच्च
न्यायालयों
के
रजिस्ट्रार
को
प्रेषित
किया
जाय।
इसके
लिए
प्रावधान
:-
(i)
भारतीय
दण्ड
संहिता
- धारा
228 क
- कतिपय
अपराध
आदि
से
पीड़ित
व्यक्ति
की
पहचान
का
प्रकटीकरण
:-
(1)
जो
कोई
किसी
नाम
या
अन्य
बात
को,जिससे
किसी
ऐसे
व्यक्ति
को
(जिसे
इस
धारा
में
इसके
पश्चात्
पीड़ित
व्यक्ति
कहा
गया
है)
पहचान
हो
सकती
है,
जिसके
विरुद्ध
धारा
376, धारा
376-क,
धारा
376-ख,
धारा
376-ग
या
धारा
376-घ
के
अधीन
किसी
अपराध
का
किया
जाना
अभिकथित
है
या
किया
गया
पाया
गया
है,
मुद्रित
या
प्रकाशित
करेगा
वह
दोनों
में
से
किसी
भाँति
के
कारावास
से,
जिसकी
अवधि
दो
वर्ष
तक
की
हो
सकेगी,
दण्डित
किया
जाएगा
और
जुर्माने
से
भी
दण्डनीय
होगा।
(2)
उपधारा
(1) की
किसी
बात
का
विस्तार
किसी
नाम
या
अन्य
बात
के
मुद्रण
या
प्रकाशन
पर,
यदि
उससे
पीड़ित
व्यक्ति
की
पहचान
हो
सकती
है,
तब
नहीं
होता
है
जब
ऐसा
मुद्रण
या
प्रकाशन-
(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या
(ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या
(ग)
जहाँ
पीड़ित
व्यक्ति
की
मृत्यु
हो
चुकी
है
अथवा
वह
अवयस्क
या
विकृतचित्त
है
वहाँ,
पीड़ित
व्यक्ति
के
निकट
सम्बन्धी
द्वारा
या
उसके
लिखित
प्राधिकार
से
किया
जाता
है।
.webp)
Comments
Post a Comment