लोकहित वाद

लोकहित वाद को ही जनहित याचिका या PUBLIC INTEREST LITIGATION भी कहा जाता है। 

संविधान के अनुच्छेद 32 यह उपबन्ध करता है कि वाद वही व्यक्ति ला सकता है जिसके मौलिक अधिकारो का उल्लंघन हुआ हो।

इसका मतलब यह होता था कि ऐसे व्यक्ति वाद नहीं ला पाते थे जो साधन-सम्पन्न नहीं थे भले ही उनके मूल अधिकारों का अतिक्रमण हुआ हो। 

परन्तु उच्चतम न्यायालय ने अपने आधुनिक निर्णयों में उपर्युक्त नियम में परिवर्तन किया है और अनुच्छेद 32 के क्षेत्र का विस्तार किया है। उच्चतम न्यायालय के द्वारा अब कोई भी व्यक्ति या संस्था जो लोकहित से प्रेरित है मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए वाद ला सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि वह उससे सम्बद्ध हो। परन्तु वाद दायर तभी किया जाना चाहिए जब मामला लोक हित का हो।


लोकहित वाद-जनहित याचिका-PIL-LaBwR


लोकहित वाद से जुड़े महत्वपूर्ण वाद


एम० सी० मेहता बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया:-

इस मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि दिल्ली में जो प्रदूषण पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से फैल रहा है उसके लिए लोक हित का वाद लाया जा सकता है।


सुनील बत्रा बनाम डेलही एडमिनिस्ट्रेशन:-

इस मामले में एक व्यक्ति जो आजीवन कारावास की सजा काट रहा था, जेल के एक वार्डेन द्वारा उसके साथ क्रूर एवं अमानुषिक आचरण किया जा रहा था। इसकी शिकायत एक दूसरे कैदी ने पत्र द्वारा न्यायालय को दी। न्यायालय ने इस पत्र को ही रिट मान लिया। जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि बन्दी के साथ निर्दयता एवं अमानुषिक आचरण बन्द किया जाय। मामले की जाँच की जाय और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही की जाय।


 पी० के० सिन्हा बनाम उड़ीसा राज्य का वाद:-

इस मामले में न्यायालय ने उस समाचार को ही रिट मान लिया जो नेत्रहीन बालिका विद्यालय की लडकियों के लैंगिक शोषण के बारे में था। न्यायालय ने इसे लोक हित का मामला मानते हए सरकार को जाँच करने एवं उचित प्रबन्ध करने का निर्देश दिया।


 बन्धुआ मुक्ति मोर्चा बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया:- 

इस मामले में एक सामाजिक संस्थान ने उच्चतम न्यायालय को पत्र लिखकर यह सूचना दी कि हरियाणा राज्य के फरीदकोट जिले में पत्थर की खानों में श्रमिकों के साथ अमानवीय सलूक किया जा रहा है। उच्चतम् न्यायालय ने इस पत्र को रिट मानते हुए शिकायत की जाँच करने के लिए दो सदस्यीय आयोग गठित किया। आयोग ने शिकायत को सही पाया। न्यायालय ने बन्धुआ श्रमिकों को मुक्त करने का आदेश दिया और उन पर श्रमिक कल्याण सम्बन्धी विधियों को लागू करने का आदेश दिया।


 एस० सी० मेहता बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया:-

इस मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि गंगा नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए कोई भी व्यक्ति वाद ला सकता है क्योंकि यह लोक हित का मामला है।


 अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया:-

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि लोकहित के संरक्षण के लिए कोई अपंजीकृत संघ भी अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत रिट के लिए आवेदन कर सकता है।


 पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया:-

इस मामले में भी उच्चतम न्यायालय ने एक पत्र को रिट मान लिया। इसमें याचिकाकर्ता संघ ने एशियाड परियोजना में कार्य कर रहे मजदूरों को कम मजदूरी देने की शिकायत की थी। उच्चतम न्यायालय ने उचित मजदूरी भुगतान करने का आदेश देते हुए यह मत व्यक्त किया कि अब लोकहित के मामलों में समाज का कोई भी व्यक्ति या संस्था आवेदन कर सकता है।


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