वकालत
➽ वकालत क्या है?
➽ वकालत की प्रक्रिया क्या होती है?
➽ वकालत में वकील को ध्यान देने योग्य बात क्या है?
➽ आरोप पत्र खारिज क्यो होता है?
➽ अधिवक्ता की ख्याति क्या होता है?
➽ सफल अधिवक्ता के लिए क्या नहीं करना चाहिये?
➽ सफल अधिवक्ता बनने के लिए क्या करना चाहिये?
➽ स्टे कब लेना चाहिये?
➽ वर्तमान वकालत प्रक्रिया के दोष क्या है?
➽ वकालत क्या है?
वकालत शब्द अपना व्यापक अर्थ रखता है तथा यह एक जटिल प्रक्रिया है। आधुनिक युग में इस प्रक्रिया ने सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में व्यापक क्षेत्र बनाया है। वकालत की प्रक्रिया सामाजिक और राजनैतिक विचारों से अधिक प्रभावी है। प्रत्येक विवाद में वकीलों को पक्ष-विपक्ष दोनों प्रकार के अलग-अलग कदम उठाने पड़ते हैं। व्यावहारिक एवं आपराधिक मुकदमों में वाद प्रस्तुतीकरण एवं प्रथम सूचना रिपोर्ट से लेकर निर्णय तक की प्रक्रिया “वकालत” है।
➽ वकालत की प्रक्रिया क्या होती है?
वकालत के रूप को विवाद के स्वरूप के अनुसार निश्चित किया जा सकता है।आपराधिक वादों में पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मुकदमा शुरू होता है तो जाँच-पड़ताल करना पुलिस का कार्य है। जाँच-पड़ताल के उपरान्त आरोप-पत्र तथा मुकदमे का परीक्षण वकालत की प्रक्रिया का अंग होती है आरोपों की सिद्धि के लिये विभिन्न साक्ष्यों को प्रस्तुत करना पड़ता है। विशेषतः आपराधिक मामलों में एक पक्ष राज्य होता है। अतः राज्य द्वारा अभियोजन होता है। अभियोजन पक्ष आरोपों को सिद्ध करने के लिये मौखिक तथा दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है।
इस प्रक्रिया में सदैव यह ध्यान देना होता है कि प्राथमिक साक्ष्य ही प्रस्तुत किये जायें, क्योंकि ये साक्ष्य काफी महत्वपूर्ण होतें हैं। वकालत में वकील को ध्यान देने योग्य बात है कि गवाहों की संख्या से ज्यादा गवाहों की गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण होती है।
➽ वकालत में वकील को ध्यान देने योग्य बात क्या है?
प्रत्येक विधि स्नातक को इसका ज्ञान होना चाहिये कि सदैव न्यायालय आरोपों की संरचना करता है जिसका जवाब आरोपी को देना होता है। आरोपित प्रक्रिया तकनीकी से पूर्ण होती है।वकील को इन तकनीकी बिन्दुआ पर विशेष ध्यान देना चाहिये क्योंकि किसी भी तकनीकी बिन्दु पर आरोप-पत्र खारिज हो सकता है।
➽ आरोप पत्र खारिज क्यो होता है?
व्यावहारिक दृष्टि से विपक्षी वकील को आरोप-पत्र में ऐसी त्रुटियाँ निकालनी चाहिये जिससे आरोप-पत्र शीघ्र निरस्त हो जायें ताकि विपक्षी वादकारी संतुष्टि प्राप्त कर सकें तथा एक लम्बी चलने वाली प्रक्रिया से बच जायें।
परिवाद-पत्र में विरोधी पक्ष के अधिवक्ता को वकालत के व्यावहारिक दृष्टि से सदैव कमियाँ खोजनी चाहिये। प्रायः विपक्ष के अधिवक्ता को ऐसी मौलिक त्रुटि मिल ही जाती है जिसके आधार पर आरोप पत्र खारिज हो सकता है।
यदि किसी सारहीन तकनीकी तथ्य पर आरोप-पत्र खारिज हो रहा हो तो शिकायती पक्ष को उसे तकनीकी बिन्दु पर चुनौती देनी चाहिये जिससे शिकायत-पत्र निरस्त होने से बच सके।
➽ अधिवक्ता की ख्याति क्या होता है?
विधिक
नीति के मुताविक वकील को विवाद लम्बा खींचने का प्रयास नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे कोई सारवान उपलब्धि नहीं होती है और ऐसे प्रयासों से अधिवक्ता को ख्याति प्राप्त नहीं होती है। अपमानित करने के आशय से किए गये शिकायत वाद शीघ्रातिशीघ्र खत्म करने का प्रयास करना चाहिये।
➽ सफल अधिवक्ता के लिए क्या नहीं करना चाहिये?
वकालत का सम्बन्ध अधिवक्ता की मानवीय निपुणता से है। इस व्यवसाय का नैतिक व मानवीय दृष्टि से पतन हुआ है। दलाली प्रथा ने न्यायालयों का दामन थाम लिया है। एक वकील को यह व्यवस्था न तो स्वीकार करनी चाहिये और न ही अस्वीकार करनी चाहिये। उसे यह ध्यान रखना होगा कि उसे विरादरी में रहना है तो वही करना होगा जो विरादरी के लोग करते हैं। इस व्यवसाय में प्रवेशार्थी को सदैव यह ध्यान रखना होगा कि मात्र दलाली के आधार पर वह सफल अधिवक्ता नहीं बन सकता है क्योंकि सफलता का मार्ग कठिन, लम्बा तथा थकावट से पूर्ण है। आज का वादकारी भी ओछे हथकण्डे अपनाता हैं और उसका उद्देश्य येन-केन प्रकारेण मुकदमा जीतना होता है न्याय मिले या न मिले।
➽ सफल अधिवक्ता बनने के लिए क्या करना चाहिये?
एक सफल अधिवक्ता बनने के लिये दीर्घकालीन कठोर परिश्रम करना होता है।
➽ स्टे कब लेना चाहिये?
यदि अधिवक्ता अपने को किसी बिन्दु पर असमर्थ समझता है तो उसे स्टे ले लेना चाहिये लेकिन ध्यान रहे अधिक स्टे आदेश न ले अन्यथा उसे आदेश की लागत देनी पड़ती है। मुकदमे के दौरान वकील को अनेक शपथ-पत्र अथवा अन्य विभिन्न प्रकार के प्रार्थना-पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करने होते हैं।
मामलों को कमजोर बनाने वाले प्रार्थना- पत्र वकील को नहीं देना चाहिये क्योंकि प्रत्येक प्रार्थना-पत्र पर न्यायालयी आदेश होते हैं जिन पर वकील का ध्यान होना चाहिये। दोनों पक्षों द्वारा जितने भी शपथ-पत्र अथवा प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किये जाते हैं वे पत्रावली के अंग बन जाते हैं। यदि न्यायालय पत्रावली व अभिलेख के आधार पर निर्णय न देकर अन्य अभिलेख पर देता है तो इन निर्णयों के विरुद्ध अपील व पुनर्विलोकन आसान हो जाता है।
➽ वर्तमान वकालत प्रक्रिया के दोष क्या है?
वर्तमान वकालत का व्यवसाय धीरे-धीरे विकास की ओर उन्मुख है जिसकी प्रक्रिया समय के साथ परिवर्तित व विकसित होती जा रही है। आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इस वकालत व्यवसाय को नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तथा आधुनिक विधिक शासन सिद्धान्तों के अधीन कार्य करना पड रहा है। विधि व्यवसाय न होकर उद्योग का रूप ले चुका है। विधि व्यवसाय में दलाली के प्रचलन ने इसे न्याय के निम्न स्तर पर पहुँचा दिया है। अन्य व्यवसाय की तरह सारी बुराइयाँ इसमें आ चुकी है।
हमारी वकालत का सबसे बड़ा दोष यह है कि अधिवक्ता अपने पक्ष को ही प्रस्तुत करता है जिससे वह मुकदमा जीतना चाहता है। इस प्रकार वकालत का ध्येय सामाजिक न्याय नहीं वरन् धनो पार्जन का माध्यम है। वकालत में उद्देश्य के बदलाव ने मूल ढाँचे में परिवर्तन कर दिया है। निम्न व उच्च स्तर के न्यायालय एक व्यस्त कार्यशाला के रूप में कार्य करने लगे हैं। इस व्यवसाय में कुछ व्यक्तियों की व्यावहारिक निपुणता ने व्यवसाय में एकाधिकार स्थापित कर लिया है।
निष्कर्ष
संक्षेप में,
हम कह
सकते हैं
कि भारतीय
वकालत में
अनेक व्यावहारिक
व सैद्धान्तिक
त्रुटियाँ हैं। भारतीय
वकील न्यायालयों
में विधि
व्याख्या न
करके विधि
की जोड़-तोड़ से
मामले के
निपटारे पर
विशेष ध्यान
देते हैं
तथा धनोपार्जन
के लिये
वह अधिक
लालायित रहते
हैं। अतः भारतीय
वकालत में
अच्छाइयाँ कम
खामियाँ अधिक
हैं।



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